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संसद में सरकार जवाब से भाग रही, Modi government के लिए विपक्ष बना खतरा!

the government is running away from its answers in parliament
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सरकार संसद में जवाब से भाग रही

देश की संसद में शुक्रवार से चल रहा बड़ा हंगामा आखिरकार समाप्त हुआ है, कम से कम अभी के लिए। विपक्ष के लगातार सवालों और हंगामे से बचकर मोदी सरकार (Modi government) ने खुद को बचाने के लिए अब नई रणनीति अपनाई है। हंगामे के पीछे की वजह तो विपक्षी सवाल और सरकार का जवाब न देना था, पर असल कहानी में दोनों पक्षों का संघर्ष बेहद जटिल है। इस पोस्ट में हम इसकी पूरी परतें खोलेंगे, ताकी नेतागिरी और संसदीय कार्यप्रणाली की यह जंग समझ सकें।

विपक्ष की सदन कार्यवाही में गतिरोध

पिछले कई दिनों से संसद में बहस बंद है। विपक्ष बार-बार हंगामे कर रहा है, प्रश्नकाल रोक रहा है और विधेयकों पर चर्चा नहीं होने देता। इससे संसद का कामकाज ठप पड़ गया है। हर दिन सदन का कार्य परेशानी में है, और सवालों का जवाब मांगने वाली उम्मीदें धूमिल हो रही हैं। सवाल पूछना तो संविधान की मुख्य बात है, पर सरकार यह सवालों का जवाब ही नहीं देना चाहती। नतीजा, प्रश्नकाल में लंबी खामोशी फैल जाती है और बहस न हो पाती है।

सरकार की जवाबदेही से बचाव की रणनीति

सरकार अपने जवाब से भाग रही है। चुनाव आयोग के एसआईआर (SIR) की फाड़कर फेंकने, और ऑपरेशन सिंदूर जैसे विवादित मुद्दों का बहाना बनाकर सरकार सवालों से मुंह मोड़ती आई है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार अपने हिस्से का जवाब नहीं देना चाहती। संसद में सवालों का जवाब ही नहीं मिल रहा, और सरकार का रवैया लापरवाही का प्रतीक बन गया है। यह सब लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

प्रमुख घटनाएँ और विवाद

संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन इन दिनों आम हो गया है। चुनाव आयोग का एसआईआर तोड़ना और डस्टबिन में फेंकना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। विपक्ष के नेताओं जैसे राहुल गांधी और मलिकार्जुन खड़गे ने भी इसे जमकर विरोध किया। विपक्ष ने प्रदर्शन कर सरकार को घेर लिया। संसद का माहौल तनावपूर्ण हो गया है, और सरकार खुद ही फंसती नजर आ रही है।

सर्वदलीय बैठक का आयोजन और उसके परिणाम

संसद के भीतर और बाहर विरोध तेज हो गया। विपक्ष की एकजुटता देखकर स्पीकर ओम बिरला ने अचानक आपात बैठक बुलाई। इस बैठक में तय हुआ कि अब 28 जुलाई से संसद का संचालन फिर से शुरू किया जाएगा। इस बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी कि दोनों ही सत्रों में बहस होगी। इस फैसले ने सरकार को बड़ी राहत दी है, पर विपक्ष का सवाल है कि क्या ये वाकई सृजनात्मक कदम हैं या बस फेंकने का तरीका?

विपक्ष का प्रतिक्रिया और आंदोलन

बैठक के बाद विपक्ष के नेता राहुल गांधी, मलिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं ने पीएम मोदी का भी सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि बिना प्रधानमंत्री के सवाल का जवाब नहीं चलेगा। इस बात को लेकर खींचतान बढ़ गई। विपक्ष ने वॉकआउट किया और विरोध प्रदर्शन भी किया। इसमें कोई शक नहीं, विपक्ष का एकजुट होना सरकार के लिए खतरा बन गया है।

राजनीतिक रणनीतियों का विश्लेषण

विपक्ष की यह एकता सरकार के लिए बड़ा झटका है। आमतौर पर विपक्ष आपस में लड़ता रहता है, पर इस बार एकजुट होकर सवाल कर रहा है। दूसरी तरफ, सरकार को भी समझ में आया कि विपक्ष का विरोध किस हद तक मजबूत है। इस ऑपरेशन सिंदूर के बहाने सरकार को अपने आप को जवाब देने का मौका मिल गया है।

ऑपरेशन सिंदूर पर बहस का महत्व

यह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी वजह से हर पार्टी की नजरें संसद पर टिकी हैं। रक्षा मंत्री और अन्य मंत्री इस पर चर्चा कर सकते हैं। यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। इस बहस का मकसद सरकार की जवाबदेही तय करना है। विपक्ष का सवाल है कि सरकार इससे क्यों भाग रही थी? अब, 28 और 29 जुलाई को दोनों सदनों में इस पर चर्चा होगी।

प्रधानमंत्री का भाग लेना और राजनीतिक प्रभाव

प्रधानमंत्री मोदी का विदेश दौरा खत्म होने के बाद, उनके चर्चा में भाग लेने की संभावना जताई जा रही है। विपक्ष के दबाव में, उनकी उपस्थिति जरूरी हो गई है। यह बहस राजनीतिक तख्तापलट की तरह है, क्योंकि पहले वे सवालों से भागे थे। अब उन्हें संसद में आकर जवाब देना पड़ेगा। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार खुद ही अपनी कमजोरी मान रही है।

आगामी संभावनाएँ और अपेक्षाएँ

28 जुलाई को लोकसभा और 29 जुलाई को राज्यसभा में चर्चा होगी। इस दौरान, चर्चा का माहौल काफी हद तक शांतिपूर्ण रहने की उम्मीद है। मोदी खुद भी इसमें भाग लेंगे, या नहीं, यह कार्यवाही का मुख्य बिंदू रहेगा। इस बीच, सरकार और विपक्ष दोनों को समझना पड़ेगा कि संसद की मर्यादा और अभिव्यक्ति का अधिकार कितना जरूरी है।

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