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महाभियोग का महाकाल! धनखड़ का इस्तीफा Justice Verma विवाद के गहरे राज

the great era of impeachment dhankhar's resignation is the deep secret of justice verma controversy
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देश में अभी सबसे ज्वलन्त प्रश्न है कि हमारी सरकार और कोर्ट के बीच क्या चल रहा है। एक तरफ, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep dhankhar) ने अचानक से इस्तीफा दे दिया। दूसरी ओर, जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव खारिज हो गया। इन दोनों घटनाओं ने कई बड़े प्रश्न खड़े कर दिए हैं। क्या ये सरकार के राजनीति कदम का हिस्सा हैं? इन घटनाओं का भारत की राजनीति और न्याय व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? ये समझना जरूरी है कि इन घटनाओं का क्या मतलब हो सकता है।

महाभियोग का महाकाल: क्या है महाभियोग

महाभियोग का मतलब है कि जब कोई बड़ा गलत काम मिले, तो सरकार या संसद फिर कठोर कदम उठाती है। भारत में इसकी शुरुआत बहुत पहले हो चुकी है। इसके जरिये सरकार या जजों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। मकसद है भ्रष्टाचार, लापरवाही या गलत फैसले करने वालों को जवाबदेह बनाना। ये संसद की ताकत है, जिससे किसी अधिकारी को गिरफ्तार या हटाया जा सकता है।

महाभियोग कैसे काम करता है? पहले, एक सांसद या सांसदों का समूह प्रस्ताव लााता है। फिर इस पर चर्चा की जाती है। दोनों सदनों में वोटिंग कराई जाती है। अगर दोनों सदनों में भारी समर्थन मिलता है, तो पद से हटाने का फैसला होता है। अक्सर, प्रस्ताव पहले लोकसभा में आता है। अगर संसद दोनों में समर्थन दे, तो राष्ट्रपति का हस्ताक्षर जरूरी हो जाता है। यह प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब कोई जज या मंत्री पर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं।

महाभियोग प्रस्ताव खारिज

धनखड़ का राजनीतिक सफर लंबा रहा है। उन्होंने कई विवादों का सामना किया। उनके इस्तीफे की वजहें बताई गई हैं, जैसे मोदी सरकार से मतभेद। लेकिन सबसे बड़ा कारण है कि उन्होंने वर्मा के महाभियोग का समर्थन किया था। यह कदम उनके लिए बड़ा झटका बन गया। विशेषज्ञ मानते हैं, यह सरकार के खिलाफ संकेत हैं।

जब उस समय महाभियोग का प्रस्ताव आया, तो धनखड़ ने तुरंत समर्थन कर दिया। इससे सरकार नाराज हो गई। माना जाता है कि उनका मकसद था कि महाभियोग का रिकॉर्ड सरकार के पक्ष में लिखा जाए। अब उनके इस्तीफे के बाद प्रस्ताव खारिज कर दिया गया है। इससे साफ होता है कि सरकार को उनसे कोई समर्थन नहीं चाहिए।

धनखड़ के इस्तीफे के तुरंत बाद महाभियोग का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया गया। फिर सरकार ने योजना बनाई कि इसे फिर से लोकसभा में लाया जाए। उनका मानना है कि ऐसा करने से सरकार अपने हक में हिसाब-किताब रख सकती है। सवाल है कि यह सब इतना जटिल क्यों हो रहा है? क्या यह सब सिर्फ राजनीति का खेल है?

विपक्ष बना रही रणनीति

यशवंत वर्मा के महाभियोग पर नई खबरें आ रही हैं। प्रस्ताव पहले मंजूर किया गया, फिर खारिज कर दिया गया। इसका मतलब है कि सरकार अपने इरादों को साफ करना चाहती थी। सरकार चाहती थी कि यह मामला लोकसभा तक पहुंचे ताकि फायदा हो सके।

अब सरकार का प्लान है कि इस मामले को फिर से लोकसभा में लाया जाए। ऐसा इसलिए ताकि दोनों सदनों में रिकॉर्ड अलग न बने। सरकार चाहती है कि अगर प्रस्ताव लोकसभा ने पास कर लिया, तो वह ही अंतिम माना जाए। विपक्ष भी इस खेल में अपनी रणनीति बना रहा है। वह इस खतरे का इस्तेमाल कर अपनी खामियों को छिपाने का प्रयास कर रहा है। सरकार चाहती है कि प्रस्ताव अपने पक्ष में पास हो और जनता का समर्थन मिले। इस सबमें राजनीति ही हावी है।

असली खेल न्यायपालिका या जांच एजेंसियों के पीछे

जब वर्मा पर महाभियोग का प्रस्ताव आया, तो उन्होंने खुद ही गवाही चुनौती दी। कहा कि रिपोर्ट में कई लूपहोल्स हैं। इसका संकेत है कि असली खेल न्यायपालिका या जांच एजेंसियों के पीछे चल रहा है। सरकार का मकसद सही जांच कराना है, लेकिन घटनाक्रम बताते हैं कि बड़े खुलासे से बचना चाहती है। वर्मा ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट झूठी है। इससे स्थिति और जटिल हो गई।

इन सब बातों का मकसद साफ है कि बिना स्वतंत्र न्यायपालिका और जांच के लोकतंत्र कमजोर हो सकता है। न्यायपालिका की आजादी जरूरी है ताकि नेता और अधिकारी नियम तोड़ने से डरें। यही सही तो जवाबदेही और जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है। जब यह सब ठीक से चलता रहेगा, तभी सरकार और जनता का भरोसा मजबूत रहेगा।

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