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Vice President जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की सच्चाई: RTI खुलासे ने उड़ाई धज्जियां

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क्या उपराष्ट्रपति (Vice President) जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया? हाल की मीडिया रिपोर्ट्स और एक आरटीआई खुलासे के बीच भारी अंतर है। इसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की खबरों ने प्रोटोकॉल तोड़ने और राष्ट्रपति से मुलाकात न होने जैसी कई अटकलों को हवा दी। लेकिन सच्चाई इससे कहीं अलग है। तो आईये जानते हैं उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की सच्चाई?

आरटीआई ने खोली Vice President जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की सच्चाई: क्या सच में हुआ इस्तीफा?

एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन से हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है। इसके अनुसार, 21 जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई थी। यह जानकारी मीडिया में चलाई गई इस्तीफे की खबरों पर सीधा सवाल उठाती है।

मीडिया रिपोर्ट्स का खंडन

मीडिया में ऐसी खबरें थीं कि धनखड़ ने प्रोटोकॉल तोड़कर राष्ट्रपति से मिलने का प्रयास किया। हालांकि, आरटीआई खुलासे में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। इसके अलावा, उपराष्ट्रपति को जबरन हाउस अरेस्ट किए जाने की खबरें भी थीं। इन दावों को भी आरटीआई खुलासे के आलोक में देखा जा रहा है, जिससे इनकी सत्यता पर संदेह पैदा होता है।

संवैधानिक प्रक्रिया: उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का क्या है नियम?

भारत के संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का इस्तीफा सीधे राष्ट्रपति को दिया जाता है। प्रोटोकॉल के मुताबिक, केवल राष्ट्रपति ही उपराष्ट्रपति का इस्तीफा स्वीकार कर सकते हैं। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इस प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल नहीं होते। उनका उपराष्ट्रपति का इस्तीफा स्वीकार करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।

गैर-संवैधानिक इस्तीफे का सवाल

अगर आरटीआई खुलासे के अनुसार, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बीच 21 जुलाई को कोई मुलाकात ही नहीं हुई, तो इस्तीफा कैसे स्वीकार हुआ? यह सवाल उठता है कि क्या इस्तीफे की प्रक्रिया संवैधानिक रूप से सही थी। इससे आने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव की वैधता पर भी सवाल खड़ा होता है।

उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की अटकलें: मीडिया का खेल या राजनीतिक षड्यंत्र?

यह समझना मुश्किल है कि उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की खबरें कहाँ से शुरू हुईं। “जबरन हाउस अरेस्ट” की थ्योरी को भी हवा दी गई। इन अटकलों ने जनता के बीच भ्रम पैदा किया।

सवाल यह उठता है कि क्या मीडिया ने बिना किसी ठोस सबूत के ऐसी खबरें फैलाईं? क्या यह जिम्मेदार पत्रकारिता का उदाहरण है? ऐसी खबरों से जनता को गुमराह किया जा सकता है।

सच्चाई की पड़ताल: आगे क्या?

आरटीआई जैसे माध्यम जनता को सच्चाई जानने का अधिकार देते हैं। यह नागरिकों को ऐसी खबरों के प्रति जागरूक रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। सूचना का अधिकार एक शक्तिशाली उपकरण है।

यह मामला मीडिया ट्रायल के बढ़ते चलन पर भी प्रकाश डालता है। संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखना महत्वपूर्ण है। हमें गलत सूचना से बचना चाहिए।

निष्कर्ष

आरटीआई खुलासे ने उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की खबरों को पूरी तरह झूठा साबित कर दिया है। मीडिया की जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण है। हमें हमेशा सच्चाई की जांच करनी चाहिए। जनता को झूठी खबरों से सावधान रहना होगा। वहीं संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

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