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Nitin gadkari के बेटों पर कसा शिकंजा! इथेनॉल मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

tightening grip on nitin gadkari sons ethanol case reaches supreme court
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भारतीय बाज़ार में 80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल के मिश्रण वाले E20 ईंधन की हालिया बाढ़ ने एक गंभीर बहस छेड़ दी है। जहाँ इसके समर्थक इसके पर्यावरणीय लाभों और तेल आयात पर निर्भरता कम करने की क्षमता का बखान कर रहे हैं, वहीं यह मामला अब एक नाज़ुक मोड़ पर पहुँच गया है क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है।

अधिवक्ता अक्षय मल्होत्रा ​​द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) में आरोप लगाया गया है कि E20 नीति उपभोक्ताओं का शोषण करने और उन्हें गुमराह करने के लिए बनाई गई एक भ्रामक चाल है।

आर्थिक हितों का एक जटिल जाल

यह मुकदमा, जिसे अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है, इस दावे पर केंद्रित है कि उपभोक्ताओं में पर्याप्त जागरूकता के बिना लागू किया गया यह ईंधन मिश्रण वाहनों के इंजनों और परिणामस्वरूप, नागरिकों की वित्तीय स्थिति पर हानिकारक प्रभाव डाल रहा है।

इस विवाद के मूल में आर्थिक हितों का एक जटिल जाल है, जिसके आरोप राजनीतिक क्षेत्र के संभावित लाभार्थियों की ओर इशारा करते हैं। रिपोर्टें तेजी से बढ़ते इथेनॉल उत्पादन उद्योग और प्रमुख राजनीतिक हस्तियों के परिवारों के बीच सीधा संबंध दर्शाती हैं।

जिससे E20 ईंधन को व्यापक रूप से अपनाने के पीछे की निष्पक्षता और वास्तविक उद्देश्यों पर गंभीर सवाल उठते हैं। जैसे-जैसे उपभोक्ता अपने वाहनों पर इस ईंधन के प्रभावों से जूझ रहे हैं, नीति की सत्यनिष्ठा भी गहन जांच के दायरे में है, जिससे इसके कार्यान्वयन और इसके कथित लाभों की गहन जांच की आवश्यकता है।

E20 ईंधन नीति: उपभोक्ता की दुविधा

E20 ईंधन एक मिश्रित ईंधन है। इसमें 80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल होता है। सरकार का कहना है कि यह पर्यावरण के लिए अच्छा है। इससे भारत को तेल आयात कम करने में भी मदद मिलती है। यह नीति हाल ही में लागू हुई है। अब, E20 ईंधन देश भर के पेट्रोल पंपों पर व्यापक रूप से उपलब्ध है।

उपभोक्ताओं को गुमराह करने के आरोप

अक्षय मल्होत्रा ​​नाम के एक वकील ने एक जनहित याचिका दायर की है। उनका दावा है कि E20 नीति लोगों को धोखा दे रही है। मुकदमे में तर्क दिया गया है कि उपभोक्ताओं को पता ही नहीं है कि उन्हें E20 ईंधन मिल रहा है। पेट्रोल पंपों पर इस पर स्पष्ट लेबल नहीं लगाए जा रहे हैं। जानकारी का यह अभाव एक बड़ी चिंता का विषय है।

वाहन इंजन और प्रदर्शन पर प्रभाव

E20 ईंधन कुछ कार इंजनों के लिए समस्याएँ पैदा कर सकता है। अप्रैल 2023 से पहले बनी कारों को दिक्कत हो सकती है। उनके इंजन इस मिश्रण के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए थे। इससे इंजन में शोर हो सकता है। इससे जंग भी जल्दी लग सकती है। आपकी कार का माइलेज भी कम हो सकता है। आपको ज़्यादा मरम्मत करवानी पड़ सकती है। ये समस्याएँ आपकी जेब पर भारी पड़ सकती हैं।

संभावित वित्तीय लाभ और राजनीतिक संबंध

भारत में इथेनॉल निर्माण एक तेज़ी से बढ़ता हुआ व्यवसाय है। इथेनॉल का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है। इथेनॉल बनाने वाली कंपनियाँ भारी मुनाफ़ा कमा रही हैं। यह वृद्धि काफ़ी निवेश आकर्षित कर रही है।

ई-20 ईंधन को राजनेताओं के परिवारों से जोड़ने के गंभीर दावे हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin gadkari) के बेटे कथित तौर पर इसमें शामिल हैं। निखिल गडकरी सीआईए एन एग्रो इंडस्ट्रीज के मालिक हैं। सारंग गडकरी मानस एग्रो चलाते हैं। ये कंपनियां इथेनॉल बनाती हैं। सीआईए एन एग्रो इंडस्ट्रीज का मूल्य कथित तौर पर 17 करोड़ से बढ़कर 500 करोड़ से ज़्यादा हो गया। मानस एग्रो के राजस्व में भी भारी उछाल आया। यह तेज़ वित्तीय वृद्धि सवाल खड़े करती है।

इथेनॉल पर गडकरी का रुख

नितिन गडकरी अक्सर इथेनॉल के पक्ष में बोलते रहे हैं। उन्होंने कहा है कि इससे पेट्रोल सस्ता होगा। उन्होंने यह भी कहा कि इससे किसानों को मदद मिलती है। साथ ही, इससे विदेशी तेल पर निर्भरता कम होती है। हालाँकि, हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि इथेनॉल वास्तव में पेट्रोल से ज़्यादा महंगा है। यह उनके पहले के बयानों के विपरीत है।

Nitin gadkari के बेटों पर कसा शिकंजा: जनहित याचिका दायर

अधिवक्ता अक्षय मल्होत्रा ​​की जनहित याचिका एक प्रमुख चुनौती है। यह सीधे तौर पर E20 नीति पर निशाना साधती है। याचिका में इसे उपभोक्ताओं का शोषण करने का एक तरीका बताया गया है। इसमें तर्क दिया गया है कि यह नीति भ्रामक है। इसमें सरकार के दृष्टिकोण की समीक्षा की मांग की गई है।

सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय की स्वीकृति

सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को गंभीरता से ले रहा है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। यह एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका मतलब है कि न्यायालय ई20 नीति की बारीकी से जाँच करेगा। इसके परिणाम ईंधन नियमों को प्रभावित कर सकते हैं।

कानूनी लड़ाई पर विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि सर्वोच्च न्यायालय की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि न्यायालय उपभोक्ता अधिकारों पर विचार करेगा। साथ ही, पर्यावरणीय लक्ष्यों पर भी विचार करेगा। संभवतः, बहस पारदर्शिता और निष्पक्षता पर केंद्रित होगी।

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