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Vice Presidential Election: एनडीए में मचेगा भगदड़? मोदी-शाह पर क्रॉस वोटिंग का खतरा!
भारतीय राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है। पल-पल बदलती हवाओं के बीच, नए दांव-पेंच लगातार सामने आ रहे हैं। जब से विपक्षी गठबंधन ने उपराष्ट्रपति (Vice Presidential) चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा की है, तब से प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की चिंताएं बढ़ गई हैं। ऐसा लगता है कि एनडीए गठबंधन में भगदड़ मचने वाली है, और सरकार को क्रॉस वोटिंग का डर सता रहा है।
Vice Presidential Election: भाजपा के अंदर भारी असंतोष
विपक्ष के बयानों से सरकार का ब्लड प्रेशर बढ़ गया है। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने तो यहां तक कह दिया है कि भाजपा के अंदर भारी असंतोष है और उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग होगी। उनके आत्मविश्वास को देखकर ऐसा लगता है कि विपक्ष ने कोई बड़ी योजना बनाई है। अगर ऐसा हुआ तो क्या एनडीए गठबंधन में सचमुच भगदड़ मच जाएगी? क्या नायडू को मजबूरी में विपक्ष का साथ देना पड़ेगा? क्या सरकार रातोंरात गिर सकती है?
उपराष्ट्रपति चुनाव का पद मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। पहले धनखड़ साहब के इस्तीफे से शक की निगाहें उन पर टिकी थीं। अब नए उपराष्ट्रपति का चुनाव सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। मोदी ने आरएसएस को खुश करने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया। मीडिया ने इसे ‘साउथ कार्ड’ बताया, लेकिन विपक्ष ने तेलंगाना से पूर्व जज पी सुदर्शन रेड्डी को उतारकर सबको चौंका दिया।
विपक्ष की चाल: पी. सुदर्शन रेड्डी का नामांकन
विपक्ष ने तेलंगाना से आने वाले पी. सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार बनाकर एक जबरदस्त सियासी चाल चली है। रेड्डी का तेलंगाना से होना, खासकर जब उसी राज्य के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू एनडीए के अहम सहयोगी हैं, इस चुनाव को बेहद दिलचस्प बना देता है। इस चाल ने एनडीए के सहयोगियों के सामने एक धर्म संकट खड़ा कर दिया है।
आंध्र प्रदेश की राजनीति में यह फैसला एक नया समीकरण बना गया है। सत्ताधारी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और विपक्षी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, दोनों के लिए यह एक चुनौती है। टीडीपी एनडीए की एक महत्वपूर्ण सहयोगी है। ऐसे में, क्या नायडू अपने राज्य के व्यक्ति को हराकर एनडीए के साथ वफादारी निभाएंगे? यह सवाल उन्हें क्षेत्रीय गौरव और गठबंधन की वफादारी के बीच फंसा रहा है।
“साउथ कार्ड” और उसके नतीजे
एनडीए को उम्मीद थी कि तमिलनाडु से उम्मीदवार उतारकर वे दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मजबूत करेंगे। उन्हें लगा कि उन्होंने विपक्षी गठबंधन इंडिया की हवा निकाल दी है। यह भी कहा गया कि एनडीए ने डीएमके को धर्म संकट में डाल दिया है। लेकिन सुदर्शन रेड्डी के नामांकन ने इस पूरी रणनीति को पलट दिया।
रेड्डी के तेलंगाना से होने के कारण टीडीपी पर दबाव बढ़ गया है। उन्हें अपने राज्य के नेता का समर्थन करना चाहिए या भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ रहना चाहिए? यह एक मुश्किल फैसला है।
भाजपा के अंदर असंतोष और क्रॉस वोटिंग का डर
समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने भाजपा के भीतर भारी असंतोष की बात कही है। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग निश्चित रूप से होगी। यादव, जिन्हें मुलायम सिंह यादव का असली उत्तराधिकारी माना जाता है, उनके इस बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
यादव का यह दावा कि भाजपा में असंतोष है, इस ओर इशारा करता है कि एनडीए के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। उनके आत्मविश्वास को देखकर लगता है कि विपक्ष ने कुछ ठोस योजना बनाई है।
भारतीय राजनीति का “वेगास”: कोई व्हिप नहीं
उपराष्ट्रपति चुनाव की एक खास बात यह है कि इसमें व्हिप जारी नहीं होता। इसका मतलब है कि सांसद अपने विवेक के अनुसार वोट डाल सकते हैं। यह स्थिति चुनाव को बेहद अप्रत्याशित बना देती है, जैसे वेगास में कोई भी परिणाम संभव है।
सांसदों को अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देने की पूरी आजादी है। लोकसभा में 543 में से एक सीट खाली है, और राज्यसभा में 245 में से छह सीटें खाली हैं। कुल 781 निर्वाचित सदस्य हैं। जीत के लिए 391 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
आंकड़ों के अनुसार, एनडीए के पास करीब 427 सांसदों का समर्थन है (293 लोकसभा, 134 राज्यसभा)। विपक्ष के पास 355 सांसदों का समर्थन है (249 लोकसभा, 106 राज्यसभा)। करीब 130 से अधिक सांसद किसी भी दल का हिस्सा नहीं हैं। इन निर्दलीय सांसदों का वोट चुनाव का रुख तय कर सकता है।
चंद्रबाबू नायडू की मुश्किल राह
टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू इस समय एक दुविधा में फंसे हुए हैं। उन्हें अपने राज्य के उम्मीदवार, सुदर्शन रेड्डी का समर्थन करना चाहिए या एनडीए के साथ अपनी वफादारी निभानी चाहिए? यह एक कठिन निर्णय है।
राज्य की जनता क्या कहेगी अगर नायडू अपने राज्य के व्यक्ति के खिलाफ वोट करते हैं? यह सवाल उन्हें परेशान कर रहा है।
कांग्रेस से “हॉटलाइन”: जगन मोहन रेड्डी के आरोप
कुछ समय पहले, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने दावा किया था कि चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस और राहुल गांधी के संपर्क में हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। रेड्डी ने कहा था कि दोनों नेताओं के बीच रेवंत रेड्डी एक हॉटलाइन की तरह काम कर रहे हैं।
क्या यह हॉटलाइन अभी भी सक्रिय है? क्या उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए पर्दे के पीछे कोई साजिश रची जा रही है? क्या नायडू के लिए यह चुनाव राहुल या मोदी में से किसी एक को चुनने का मौका है?
आंध्र प्रदेश का सियासी शतरंज
सुदर्शन रेड्डी के नामांकन ने आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। टीडीपी और वाईएसआरसीपी, दोनों को इस फैसले से चुनौती मिली है। क्षेत्रीय भावनाएं उनके निर्णयों को प्रभावित कर सकती हैं।
वाईएसआरसीपी प्रमुख जगन मोहन रेड्डी ने पहले ही एनडीए उम्मीदवार राधाकृष्णन का समर्थन करने की घोषणा की है। लेकिन सुदर्शन रेड्डी के मैदान में उतरने से उनकी स्थिति भी जटिल हो गई है।
रेड-समुदाय की भावनाएं और चुनावी गणित
आंध्र प्रदेश में रेड-समुदाय का एक बड़ा आधार है। सुदर्शन रेड्डी के नाम ने इस समुदाय में क्षेत्रीय भावनाओं को जगा दिया है। यह जगन मोहन रेड्डी के लिए एक मुश्किल स्थिति पैदा करता है।
क्या वे एनडीए के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाएंगे या अपने राज्य के उम्मीदवार का समर्थन करेंगे? यह सवाल उनके समर्थकों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
वोटों का खेल: एनडीए बनाम इंडिया
एनडीए के पास लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 134 सांसद हैं, कुल 427। वहीं, इंडिया गठबंधन के पास लोकसभा में 249 और राज्यसभा में 106 सांसद हैं, कुल 355। जीत के लिए 391 वोटों की जरूरत है। एनडीए के पास आंकड़ों में बहुमत है। लेकिन क्रॉस वोटिंग की संभावना इसे अनिश्चित बना देती है।
निर्दलीय और स्वतंत्र सांसदों की अहम भूमिका
लगभग 130 से अधिक सांसद किसी भी बड़े गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। इन सांसदों के वोट चुनाव के परिणाम के लिए महत्वपूर्ण होंगे। इन निर्दलीय सांसदों का समर्थन हासिल करने के लिए दोनों पक्ष प्रयास करेंगे।
क्रॉस वोटिंग का साया
एक वास्तविक संभावना धर्मेंद्र यादव की भविष्यवाणी और व्हिप न होने की स्थिति, क्रॉस वोटिंग की संभावना को बढ़ाती है। एनडीए के पास बहुमत होने के बावजूद, क्रॉस वोटिंग उनकी जीत को मुश्किल बना सकती है। सांसदों की व्यक्तिगत पसंद इस चुनाव में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है।
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