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शेख हसीना और भारत के खिलाफ उठी आवाज, बांग्लादेश में जन प्रबोध दिवस घोषित
शेख हसीना पद से इस्तीफा दे भारत आ गई थीं। बांग्लादेश सरकार जश्न के रूप में इस दिवस को मनाएगी। बांग्लादेश सरकार 8 अगस्त को स्थापना दिवस नहीं मनाएगी। जिस दिन शेख हसीना भारत आई थी, बांग्लादेश में उस तारीख को जश्न के रूप में मनाया जाएगा। बांग्लादेश अभी शेख हसीना और भारत दोनों के विरोध के रास्ते पर है।
बांग्लादेश में मुस्लिम सांप्रदायिकता का उन्माद अल्पसंख्यक हिंदुओं के विरोध में है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आलोचनाओं की वजह से केयरटेकर सरकार की स्थापना का दिवस मनाने का निर्णय वापस ले लिया।
बांग्लादेश आर्मी ने केयरटेकर सरकार के सलाहकार परिषद से शासन चलाने का नाटक रचा हुआ है। जिन शक्तियों से निपटते हुए शेख हसीना वहां की धर्मनिरपेक्ष सरकार को चल रही थी, अब उन्हीं फिरकापरस्त शक्तियों का बोलबाला है। इस तरह बांग्लादेश में 8 अगस्त 2024 को सरकार बनी थी। सरकार बनने की तारीख 8 अगस्त का जलसा प्रस्तावित था।। परंतु बांग्लादेश में उसका विरोध हुआ और अब जलसा का दूसरा प्रयोजन बना लिया गया है।
शेख हसीना और भारत के खिलाफ उठी आवाज
सरकार ने निर्णय लिया है की 5 अगस्त को “Mas Uprising Day” यानी जन प्रबोध दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन शेख हसीना की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ किया गया था। मोहम्मद यूनुस ने केयरटेकर सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में 8 अगस्त को पदभार लिया था।
5 अगस्त को शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और वह भारत के लिए चुपचाप निकल आई थीं। परंतु मोहम्मद यूनुस की अध्यक्षता में संपन्न बैठक से तय हुआ। नूतन बांग्लादेश दिवस जैसे नहीं मनाया जाएगा वैसे ही 8 अगस्त को कोई सेलिब्रेशन नहीं होगा। सरकार के प्रेस सेक्रेटरी सफीकुल आलम के हवाले से यह खबर भारतीय समाचार पत्रों ने दिया है।
बांग्लादेश का निर्माण 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर के हुआ था
बंगाल शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बगावत पर उतर आया था और बांग्लादेश में पाकिस्तान आर्मी से लोग सीधे मुकाबला कर रहे थे। बांग्ला भाषा को पाकिस्तान सरकार ने सहयोगी भाषा के रूप में मान्यता नहीं दी थी । इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान का प्रभुत्व कायम था। बांग्ला भाषी लोग में सेवा में नौकरी पाते थे ना सरकार में। उन्हें इस्लामाबाद से इस तरह नियंत्रित किया जाता था जैसे वह देश के अंदर उपनिवेश की तरह हो।
उस समय बांग्लादेश के हिस्से में क्षेत्रीय चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी काफी बड़े बहुमत से जीती । परंतु पाकिस्तान सरकार ने उसे क्षेत्रीय सरकार बनाने का मौका नहीं दिया। इसके बाद बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के नेतृत्व में बगावत की वजह से गृह युद्ध का माहौल बन गया।
भारत की सेना ने पाकिस्तान के याहिया खान की सेना को, बांग्लादेश में जनता का दमन करने से रोक दिया। बांग्लादेश में पाकिस्तान की सैनिक टुकड़ी ने आत्म समर्पण कर दिया। इसके बाद बांग्लादेश में मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में सरकार बन गई।
मोहम्मद यूनुस को नोबेल पुरस्कार
यह लोकप्रिय सरकार थी और नए देश को सबसे पहले भारत ने और उसके ठीक बात रूस आदि अन्य देशों ने मान्यता दे दी थी। बांग्लादेश ने अत्यंत गरीब देश के रूप में शुरुआत की थी और धीरे-धीरे कुछ क्षेत्रों में उसने तरक्की की। बाद में माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में बैंकिंग के काम के लिए मोहम्मद यूनुस को नोबेल पुरस्कार दिया गया।
परंतु मोहम्मद यूनुस शेख हसीना की चुनी हुई सरकार के प्रति उदार नहीं थे। और बांग्लादेश से बाहर रहते थे। बांग्लादेश के अवाम में सांप्रदायिक उभर की वजह से ही शेख हसीना के शासन को चुनौती दी जा रही थी।
वह बहुमत से चुनी हुई सरकार बनाती थी और पिछले चुनाव में सभी पार्टियों ने वोट बहिष्कार किया था। यही वजह है कि बांग्लादेश में बागी लोगों के लिए यह एजेंडा था कि यह सरकार लोगों के मैंडेट से नहीं चल रही है।
शेख हसीना बांग्लादेश को सेकुलर तरीके से चलने में लगातार अपने देश के सांप्रदायिक उन्मादों के आगे आ जाती थी। कुछ वर्षों से हिंदुओं के दुर्गा पूजा पंडाल पर आक्रमण होने लगा तब सरकार ने शक्ति के साथ सांप्रदायिक शक्तियों का दमन किया।
बांग्लादेश में जमाते इस्लामी बांग्लादेश है
मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन है और भारत में जमाते इस्लामी हिंद के रूप में और पाकिस्तान में जमाते इस्लामी पाकिस्तान के रूप में सक्रिय रहता है। बांग्लादेश में कॉलेज के विद्यार्थियों में नौकरियां को लेकर असंतोष हुआ। पिछले साल जुलाई अगस्त महीने में सरकार का विरोध प्रदर्शन होने लगा।
एक समय आम जनता प्रधानमंत्री आवास की तरफ बड़ी संख्या में बागी मुद्रा में मार्च करने लगी। इस समय बांग्लादेश आर्मी ने इस बगावत को एक तरह से उदारता पूर्वक समर्थन किया। दूसरी तरफ आर्मी ने शेख हसीना को आर्मी के एक हेलीकॉप्टर से भारत निकल जाने का मौका भी दिया ।
वह अपने बहन के साथ भारत आ गई। एक दो बार बांग्लादेश सरकार ने भारत से कहा कि वह शेख हसीना को बांग्लादेश के हाथ में सौंप दे। जब ब्रिटेन में भी शेख हसीना को शरणागत या “एसाइलम” नहीं मिल रहा था। तब भारत ने उन्हें अत्यंत गुप्त स्थान पर यहां रहने के लिए इजाजत और व्यवस्था दे दी। शेख हसीना के विरोध में छात्रों की भी भूमिका बहुत सक्रिय थी। ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र सड़क पर इसलिए आए थे क्योंकि शिक्षितों के लिए रोजगार के अवसर का यहां अभाव है।
परंतु अंतरिम सरकार ने भी रोजगार के अवसर पैदा करने में कोई भी विशेष भूमिका नहीं निभाई है । इसलिए ढाका विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने इस सरकार के विरोध में भी प्रदर्शन किया है। अभी के अंतिम सरकार बांग्लादेश आर्मी द्वारा संरक्षित है और इस समय इस सरकार का विरोध करना पहले की तरह संभव नहीं है।
सरकार का नियंत्रण कमजोर
वहां की सेना ने आगे बढ़कर के सत्ता की कमान संभाल ली थी और सिविल शासन के नाम पर सेना ने ही पहल लेकर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में सलाहकार परिषद का निर्माण करवा दिया। बांग्लादेश में इस अंतरिम सरकार जैसे विशेष अरेंजमेंट के तहत सरकार चल रही है। वहां बढ़ रही समस्या पर से, सरकार का नियंत्रण कमजोर पड़ रहा है । परंतु इन सब घटना चक्र से बांग्लादेश, जो भारत का बहुत मित्र देश था, धीरे-धीरे निकाल कर वापस पाकिस्तान और चीन के करीब आने लगा
पिछले सप्ताह की खबर है कि चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान , मालदीव्स आदि देश मिलकर सार्क देशों के समानांतर एक संघ का निर्माण करेंगे। जिसमें भारत को नहीं बुलाया जाएगा। इस तरह बांग्लादेश के अंदर जो कुछ है रहा है वह भारतीयों के लिए या भारत के शासन के लिए, सावधानी पूर्वक निगरानी का मसला है।
वहां शेख हसीना की सरकार के अपदस्थ होने के बाद बांग्लादेश के कानून के तहत राष्ट्रद्रोह के मामले में इस्कॉन के। प्रमुख चिन्मयानंद की गिरफ्तारी कर ली थी। चिन्मयानंद जमानत पर अब बाहर हो गए हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा के मसले पर भारत को पहला करना पड़ता है।
हालांकि इस्कॉन ने चिन्मयानंद से संबंध विच्छेद कर लिया था और अपनी शाखाएं बांग्लादेश में चलने की कोशिश करता रहा। बाद में कई और हिंदू प्रवक्ताओं और संतों की वहां गिरफ्तारी हुई। इस समय 5 अगस्त को बांग्लादेश के प्रबोध का दिवस मनाया जाना, वहां की विशेष विविधता की संस्कृति के विरोध में जाता है। मुस्लिम सांप्रदायिकता भारत में अल्पसंख्यकों का आवाज है परंतु भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम सांप्रदायिकता एक चुनौती है।
लेखक – प्रियदर्शी चक्रवर्ती
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